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-राशिद सैफ़ी

शहर में एक बलात्कार हुआ था, शहर भर के अख़बार बलात्कार की ख़बर से भरे पड़े थे, तरह-तरह की चर्चाएं हो रही थीं, कोई कुछ तो कोई कुछ कह रहा था। एक चौराहे पर चार लोग खड़े हुए बातें कर रहे थे, एक ने कहा -यार आजकल ये बलात्कार की घटनाएं बहुत बढ़ गयी हैं, दूसरा बोला - मगर बलात्कार के लियें आजकल की लड़कियां भी दोषी हैं, तीसरे ने भी हाँ में हाँ मिलायी - हाँ बलात्कार तो होंगे ही, आजकल लड़कियाँ इतने छोटे कपड़े जो पहनती हैं, साड़ियां या ढंके हुए कपड़े तो पहनती ही नहीं हैं, - मर्द की नीयत तो ख़राब होगी ही। इतने में चौथा व्यक्ति बोला - अरे वो देखो उधर से एक शवयात्रा आ रही है, चारों ने घूमकर उधर देखा, एक छोटे बच्चे की शवयात्रा थी, शवयात्रा में शामिल एक व्यक्ति से चारों ने पूंछा - भाई क्या हुआ इस बच्चे को ? वह व्यक्ति बोला किसी ने 2 साल की इस बच्ची का निर्ममता से बलात्कार किया और मौत के घाट उतार दिया।

इतना सुनते ही चारों व्यक्ति अवाक रह गये और उनके सिर शर्म से झुक गये, शर्मिंदगी से बोझिल होते हुए चारों सोचने लगे कि 2 साल की बच्ची के लियें साड़ी या ढंके हुए कपड़े कहाँ से आयेंगे ? साथ ही वे अपने दिमाग में इस सवाल का जबाब ढूंढने लगे कि क्या वाक़ई आजकल हमारे समाज में बढ़ रहे बलात्कारों के लियें लड़कियों के छोटे कपड़े दोषी हैं ? या हमारे पुरुष प्रधान समाज की बीमार मानसिकता और गंदी सोच इसके लियें ज़िम्मेदार है ?

-लेखक राशिद सैफ़ी मुरादाबाद में इंसानियत वेलफेयर सोसाइटी के संस्थापक और अध्यक्ष है |
Writer:zninews(2018-02-12)
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